चुनाव आयोग का बयान और बड़ा सवाल: अगर मतदाता सूची सार्वजनिक दस्तावेज़ है तो रिकॉर्ड उपलब्ध क्यों नहीं?

आशुतोष त्रिपाठी | चुनाव चोरी के आरोपों पर चुनाव आयोग (EC) ने हाल ही में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा कि आयोग पूरी तरह निष्पक्ष है और सभी राजनीतिक दलों के साथ समान व्यवहार करता है। उन्होंने विपक्ष के आरोपों को “मिथ्या” और “संविधान का अपमान” बताया।

ज्ञानेश कुमार के मुताबिक, वोट चोरी के आरोप न केवल आयोग बल्कि जनता और लाखों चुनावकर्मियों का अपमान हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में जोड़-घटाव या स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) ड्राइव के दौरान कोई पक्षपात नहीं हुआ है और सभी लिखित शिकायतों की निष्पक्ष जांच की जाती है।

विपक्ष का आरोप बनाम आयोग का दावा

विपक्ष का आरोप है कि चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर चुनावी धांधली कर रहा है। जबकि आयोग इसे पूरी तरह निराधार और गुमराह करने वाला बताता है।

आयोग का कहना है कि वह किसी भी दबाव में काम नहीं करता और निडर होकर पारदर्शी चुनाव कराता है।—

असली सवाल: पारदर्शिता कहाँ है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी दी गई है।
साथ ही, कानून के मुताबिक मतदाता सूची एक “सार्वजनिक दस्तावेज़” (Public Document) है।

लेकिन यहीं पर सबसे बड़ा सवाल उठता है:

अगर मतदाता सूची सार्वजनिक दस्तावेज़ है, तो यह रिकॉर्ड आम जनता के लिए पूरी तरह उपलब्ध क्यों नहीं है?

क्यों हर नागरिक को इसे देखने के लिए RTI या आवेदन की ज़रूरत पड़ती है?

अगर चुनाव प्रक्रिया पारदर्शी है, तो फिर पूरी मतदाता सूची ऑनलाइन और searchable format में क्यों उपलब्ध नहीं कराई जाती?

जनता का विश्वास ही सबसे बड़ा आधार

ज्ञानेश कुमार ने कहा कि वोट चोरी के आरोप मिथ्या हैं।
लेकिन लोकतंत्र में असली भरोसा तभी बनेगा,
जब हर नागरिक अपनी गली, मोहल्ले और बूथ की मतदाता सूची खुले तौर पर देख सके।

आख़िरी सवाल

संविधान कहता है कि मतदाता सूची सार्वजनिक दस्तावेज़ है।
तो फिर आयोग इसे पूरी तरह सार्वजनिक क्यों नहीं करता?

यही वह सवाल है,
जो आज जनता के मन में गूंज रहा है—
और जिसका जवाब चुनाव आयोग को देना ही चाहिए .?

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